Follow us

अगर आप दूधिया कच्छ की सैर करना चाहते है तो आपको ऐसे कच्छ जाना चाहिए 

 
यात्र्ज़ा

कच्छ अद्भुत नज़ारों से भरपूर है. इस विस्तृत, दूधिया मरुस्थल में जहां एक ओर आप मांसाहारी गीदड़ों को गुड़-चावल खाते देखेंगे, वहीं आपको 200 वर्षों से मानवरहित एक डरावने और भूतहे गांव से भी रूबरू होने का मौक़ा मिलेगा. आप उस बंदरगाह को भी निहार सकेंगे, जहां सदियों से जहाज़ बनाने का काम किया जाता है. यहां हम आपको इस विस्तृत दूधिया मरुभूमि की कुछ अनूठी विशेषताएं बता रहे हैं.  कालो डूंगर यानी काली पहाड़ी भुज से 90 किमी की दूरी पर है. यह कच्छ की सबसे ऊंची पहाड़ी चोटी है. कालो डूंगर की यात्रा उतनी ही दिलचस्प है, जितना मज़ेदार इसकी चोटी पर पहुंचना. भुज से 20 किमी आगे बढ़ने पर आपको रास्ते में एक नीली तख्ती दिखेगी, जो आपको सूचित करेगी कि आप कर्क रेखा पर हैं.

यात्रा

जैसे-जैसे आप आगे बढ़ेंगे,भुज से लगभग 170 किमी दूर है लखपत नगर, जहां केवल सड़क मार्ग द्वारा ही पहुंचा जा सकता है. यह भारत-पाक सीमा से लगा भारत के पश्चिमी छोर पर सबसे आख़िरी शहर है. यह कोरी खाड़ी और कच्छ के रण को जोड़ता है. इसका नाम लखपत यहां की समृद्घि के चलते पड़ा था. दरअस्ल यहां रोज़ाना एक लाख कौड़ी (प्राचीन कच्छ की मुद्रा) का कारोबार होता था. भुज से केवल एक घंटे की दूरी पर है मांडवी. यह बंदरगाह शहर अपने काशीविश्वनाथ बीच और विजय विलास महल के लिए जाना जाता है.भुज में आप बस यूं ही चहलक़दमी करते हुए निकल जाइए. आईना महल, प्राग महल का बेल टॉवर, कच्छ म्यूज़ियम वो जगहें हैं, जहां आप समय बिता सकते हैं. या फिर आप सबकुछ भूलकर हमीरसर झील के किनारे बैठ चिडि़यों को देखते रहने का आनंद लें. बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि वर्ष 2001 के गुजरात भूकंप ने शहर के एक बड़े हिस्से को नष्ट कर दिया था. 

From around the web