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युवाओं में तेजी से बढ़ रही ड्रग्स की आदत, सारी दुनिया है इसकी शिकार, क्या है कारण

 
युवाओं में तेजी से बढ़ रही ड्रग्स की आदत, सारी दुनिया है इसकी शिकार, क्या है कारण

लाइफस्टाइल न्यूज डेस्क।। आजकल के बदलते लाइफस्टाइल के दौर में युवा पीढी तेजी से नशे की आदत का शिकार हो रही है।इसमें ज्यादातर युवाओं ने ड्रग्स को अपना फैशन बना लिया है। इसे हम विज्ञान के नजरिये से देखें तो नशे की लत एक बीमारी है, जिसमें व्यक्ति का स्वयं पर नियंत्रण नहीं रहता। फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत के बाद बीते तीन महीनों में हुई जांच-पड़ताल और कहीं भले नहीं पहुंची हो, लेकिन जिस एक निष्कर्ष की तरफ वह तेजी से झुकी है, वह बॉलीवुड में नशे के बढ़ते साम्राज्य का साफ संकेत देती है। इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता कि ऐसे हालात में वह क्या कर गुजरे। ऐसे में, जबकि आज पूरी फिल्म इंडस्ट्री को नशे में लिप्त बताया जा रहा है, तब कोई उस समाज की ओर क्यों नहीं झांक रहा, जहां नशे की समस्या शायद सबसे गंभीर दौर में है।

इस नशे का संदर्भ शराब आदि प्रचलित साजोसामान से नहीं, बल्कि गांजा, हेरोइन, अफीम, चरस और रसायनों की जटिल प्रक्रियाओं से बने कई तीखे मिश्रणों से है, जिनका प्रचलन युवाओं में तेजी से बढ़ा है। खास तौर से शहरी-महानगरीय संस्कृति के विस्तार के साथ नशे के सेवन ने युवाओं में जो एक सामाजिक स्वीकृति हासिल की है, वह अमीरों से लेकर मध्यवर्गीय और गरीब तबकों में भी जोर पकड़ चुकी है। जहां तक आम समाज में युवाओं के नशे की गिरफ्त में आने का सवाल है, तो आम तौर पर इसके लिए देश के एक समृद्ध राज्य पंजाब को कठघरे में खड़ा किया जाता है। संभव है कि इसके पीछे वहां पिछले दशकों में नशे के कारोबारियों को चोरी-छिपे मिले राजनीतिक संरक्षण और उड़ता पंजाब जैसे फिल्मी कनेक्शन की भी एक बड़ी भूमिका हो। लेकिन पंजाब से बाहर निकलकर देखें तो पता चलता है कि देश के कुछ दूसरे राज्य भी नशे की भयानक चपेट में हैं। 

युवाओं में तेजी से बढ़ रही ड्रग्स की आदत, सारी दुनिया है इसकी शिकार, क्या है कारण

सोशल मीडिया पर वायरल हुए फरीदकोट के इस वीडियो में एक महिला कूड़े के ढेर में पड़े अपने बेटे के शव के पास विलाप करती दिखाई दे रही थी। वीडियो में यह भी दिख रहा था कि उस लड़के के हाथ की नसों में नशे की सिरिंज लगी हुई थी। वीडियो से यह पूरी तरह से स्पष्ट पता चल रहा था कि वह लड़का नशे का आदी था और शायद ड्रग्स की ओवरडोज की वजह से उसकी मौत हो गई। इसमें शक नहीं कि बीते अरसे में युवा पीढ़ी को गिरफ्त में लेने वाले नशे को लेकर जो बदनामी पंजाब ने झेली है, उसका मुकाबला देश का कोई राज्य फिलहाल नहीं कर सका है। लेकिन देश के अन्य हिस्सों के अलावा राजधानी दिल्ली और एनसीआर कहलाने वाले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में भी पिछले वर्षो के दौरान ड्रग्स का कारोबार बहुत तेजी से फूला-फला है। हालत यह है कि बीते वर्षो में दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र नशीले पदार्थो की तस्करी का अड्डा बन गया है।

हाल के वर्षो में इस पूरे क्षेत्र में कभी यमुना किनारे खुलेआम, तो कभी गुपचुप होने वाली रेव पार्टयिों में प्रतिबंधित ड्रग्स के इस्तेमाल के बारे में दावा है कि यह करीब दस गुना तक बढ़ गया है। इनमें प्रतिबंधित ड्रग्स मसलन डायजेपाम, मंड्रेक्स, एफेटेमिन, मॉíफन, केटामाइन, मेथमफेटामाइन, एमडीएमए, पेंटाजोकिन, और कॉडिन जैसे ड्रग्स शामिल हैं और इनकी देश के विभिन्न राज्यों ही नहीं, बल्कि विदेशों तक सप्लाई की जा रही है। हमारी सरकार की मौजूदा नीति ड्रग एडिक्शन से निपटने के लिए सिंगल कोर्स ट्रीटमेंट देने की है, जिसमें नशे के शिकार शख्स को चार से छह हफ्ते तक वैकल्पिक दवाओं से ट्रीटमेंट दिया जाता है। यहां एक बड़ा सवाल नशा छुड़ाने वाली तकनीकों और इलाज की पद्धतियों का भी है। संयुक्त राष्ट्र नशे के इलाज की इस पद्धति को मान्यता तो देता है, लेकिन मौजूदा संसाधनों में आज के घोषित नशेड़ियों का इलाज शुरू किया जाए, तो उन सभी का इलाज करने में दस से बीस साल लग जाएंगे।

यह असल में एक सामाजिक समस्या भी है जो परंपरागत पारिवारिक ढांचों के बिखराव, स्वच्छंद जीवनशैली, सामाजिक अलगाव आदि के हावी होने और नैतिक मूल्यों के पतन के साथ और बढ़ती जा रही है। नशे की समस्या से जुड़ी चुनौतियों का दायरा निरंतर बढ़ता जा रहा है। यह समस्या केवल फिल्म इंडस्ट्री तक ही सीमित नहीं है। सरकार और समाज, दोनों को इस समस्या से निपटने के लिए सजिर्कल स्ट्राइक जैसी कार्रवाई करने की आवश्यकता है। वैसे यह समझ अब तक पैदा हो ही जानी चाहिए थी। कुछ लोग ड्रग्स नहीं मिलने पर बेचैनी का अनुभव करते हैं, क्योंकि उनका शरीर और दिमाग, दोनों इसकी मांग कर रहे होते हैं। ऐसी ही बेचैनी और छटपटाहट अक्सर लोगों को आत्महत्या की ओर ले जाती है। ऐसा नहीं है कि नशे की लत को छुड़ाना नामुमकिन हो। परंतु इसके लिए परिवार-समाज से सहयोग, सही व निरंतर इलाज और खुद उस व्यक्ति की इच्छाशक्ति की जरूरत होती है।

आजकल के बदलते लाइफस्टाइल के दौर में युवा पीढी तेजी से नशे की आदत का शिकार हो रही है।इसमें ज्यादातर युवाओं ने ड्रग्स को अपना फैशन बना लिया है। इसे हम विज्ञान के नजरिये से देखें तो नशे की लत एक बीमारी है, जिसमें व्यक्ति का स्वयं पर नियंत्रण नहीं रहता। फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत के बाद बीते तीन महीनों में हुई जांच-पड़ताल और कहीं भले नहीं पहुंची हो, लेकिन जिस एक निष्कर्ष की तरफ वह तेजी से झुकी है, वह बॉलीवुड में नशे के बढ़ते साम्राज्य का साफ संकेत देती है। इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता कि ऐसे हालात में वह क्या कर गुजरे। ऐसे में, जबकि आज पूरी फिल्म इंडस्ट्री को नशे में लिप्त बताया जा रहा है, तब कोई उस समाज की ओर क्यों नहीं झांक रहा, जहां नशे की समस्या शायद सबसे गंभीर दौर में है।

इस नशे का संदर्भ शराब आदि प्रचलित साजोसामान से नहीं, बल्कि गांजा, हेरोइन, अफीम, चरस और रसायनों की जटिल प्रक्रियाओं से बने कई तीखे मिश्रणों से है, जिनका प्रचलन युवाओं में तेजी से बढ़ा है। खास तौर से शहरी-महानगरीय संस्कृति के विस्तार के साथ नशे के सेवन ने युवाओं में जो एक सामाजिक स्वीकृति हासिल की है, वह अमीरों से लेकर मध्यवर्गीय और गरीब तबकों में भी जोर पकड़ चुकी है। जहां तक आम समाज में युवाओं के नशे की गिरफ्त में आने का सवाल है, तो आम तौर पर इसके लिए देश के एक समृद्ध राज्य पंजाब को कठघरे में खड़ा किया जाता है। संभव है कि इसके पीछे वहां पिछले दशकों में नशे के कारोबारियों को चोरी-छिपे मिले राजनीतिक संरक्षण और उड़ता पंजाब जैसे फिल्मी कनेक्शन की भी एक बड़ी भूमिका हो। लेकिन पंजाब से बाहर निकलकर देखें तो पता चलता है कि देश के कुछ दूसरे राज्य भी नशे की भयानक चपेट में हैं। 

युवाओं में तेजी से बढ़ रही ड्रग्स की आदत, सारी दुनिया है इसकी शिकार, क्या है कारण

सोशल मीडिया पर वायरल हुए फरीदकोट के इस वीडियो में एक महिला कूड़े के ढेर में पड़े अपने बेटे के शव के पास विलाप करती दिखाई दे रही थी। वीडियो में यह भी दिख रहा था कि उस लड़के के हाथ की नसों में नशे की सिरिंज लगी हुई थी। वीडियो से यह पूरी तरह से स्पष्ट पता चल रहा था कि वह लड़का नशे का आदी था और शायद ड्रग्स की ओवरडोज की वजह से उसकी मौत हो गई। इसमें शक नहीं कि बीते अरसे में युवा पीढ़ी को गिरफ्त में लेने वाले नशे को लेकर जो बदनामी पंजाब ने झेली है, उसका मुकाबला देश का कोई राज्य फिलहाल नहीं कर सका है। लेकिन देश के अन्य हिस्सों के अलावा राजधानी दिल्ली और एनसीआर कहलाने वाले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में भी पिछले वर्षो के दौरान ड्रग्स का कारोबार बहुत तेजी से फूला-फला है। हालत यह है कि बीते वर्षो में दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र नशीले पदार्थो की तस्करी का अड्डा बन गया है।

हाल के वर्षो में इस पूरे क्षेत्र में कभी यमुना किनारे खुलेआम, तो कभी गुपचुप होने वाली रेव पार्टयिों में प्रतिबंधित ड्रग्स के इस्तेमाल के बारे में दावा है कि यह करीब दस गुना तक बढ़ गया है। इनमें प्रतिबंधित ड्रग्स मसलन डायजेपाम, मंड्रेक्स, एफेटेमिन, मॉíफन, केटामाइन, मेथमफेटामाइन, एमडीएमए, पेंटाजोकिन, और कॉडिन जैसे ड्रग्स शामिल हैं और इनकी देश के विभिन्न राज्यों ही नहीं, बल्कि विदेशों तक सप्लाई की जा रही है। हमारी सरकार की मौजूदा नीति ड्रग एडिक्शन से निपटने के लिए सिंगल कोर्स ट्रीटमेंट देने की है, जिसमें नशे के शिकार शख्स को चार से छह हफ्ते तक वैकल्पिक दवाओं से ट्रीटमेंट दिया जाता है। यहां एक बड़ा सवाल नशा छुड़ाने वाली तकनीकों और इलाज की पद्धतियों का भी है। संयुक्त राष्ट्र नशे के इलाज की इस पद्धति को मान्यता तो देता है, लेकिन मौजूदा संसाधनों में आज के घोषित नशेड़ियों का इलाज शुरू किया जाए, तो उन सभी का इलाज करने में दस से बीस साल लग जाएंगे।

यह असल में एक सामाजिक समस्या भी है जो परंपरागत पारिवारिक ढांचों के बिखराव, स्वच्छंद जीवनशैली, सामाजिक अलगाव आदि के हावी होने और नैतिक मूल्यों के पतन के साथ और बढ़ती जा रही है। नशे की समस्या से जुड़ी चुनौतियों का दायरा निरंतर बढ़ता जा रहा है। यह समस्या केवल फिल्म इंडस्ट्री तक ही सीमित नहीं है। सरकार और समाज, दोनों को इस समस्या से निपटने के लिए सजिर्कल स्ट्राइक जैसी कार्रवाई करने की आवश्यकता है। वैसे यह समझ अब तक पैदा हो ही जानी चाहिए थी। कुछ लोग ड्रग्स नहीं मिलने पर बेचैनी का अनुभव करते हैं, क्योंकि उनका शरीर और दिमाग, दोनों इसकी मांग कर रहे होते हैं। ऐसी ही बेचैनी और छटपटाहट अक्सर लोगों को आत्महत्या की ओर ले जाती है। ऐसा नहीं है कि नशे की लत को छुड़ाना नामुमकिन हो। परंतु इसके लिए परिवार-समाज से सहयोग, सही व निरंतर इलाज और खुद उस व्यक्ति की इच्छाशक्ति की जरूरत होती है।

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