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 प्रेम की केमिस्ट्री, साइकोलॉजी और फ़िलॉसफ़ी को समझे सिर्फ ऐसे 

 
रिश्ता

शादी के बाद प्रेम अपने रूप बदल लेता है. यह शिकायत कोई नई नहीं है. डूबकर प्यार करने वाले हर प्रेमी जोड़ा वक़्त गुज़रने के साथ प्रेम की इंटेंसिटी में आनेवाली गिरावट को महसूस करके आश्चर्यचकित रहता है. हम इस बारे में केवल इतना कहेंगे यह आपके हार्मोन्स के साथ-साथ प्रकृति यानी जिसे आप भगवान, ख़ुदा या गॉड कहते हैं, उसका खेल है.प्रेम की शुरुआत में वे एक-दूसरे को देखते ही दीवाने हो जाते हैं. वह लड़के को दुनिया की सबसे अच्छी लड़की लगने लगती है और लड़की को दुनिया का सबसे हैंडसम लड़का. वे एक दूसरे को पूर्ण पाते हैं. वे ख़ुद को एक ऐसा जोड़ा मानने लगते हैं जो शायद शिरी-फरहाद या लैला-मजनू के बाद धरती पर अवतरित हुआ है.

रिश्ता

प्रेम अपने चरम पर होने पर अपने प्रेमी के प्रति सिर्फ़ अच्छा ही महसूस कर सकता है और कुछ नहीं, यदि कोई उसकी बुराई करता है तो हमें लगता है विवाह की वास्तविक दुनिया में अब आपका स्वागत है प्रिय हसीन युगलों! विवाह की इस दुनिया में खाने में बाल आने पर झगड़े होने लगते हैं. वही बाल जिनके साए में सोकर ज़िंदगी बिताने के गाने आशिक़ गाता था. चाय के मग पर लगे लिपिस्टिक के निशान को सहेज कर रखने वाले दीवाने को अब वही निशान स्वच्छता अभियान में लगा एक धब्बा नज़र आता है. प्रेमिका की जूतियों को उठाकर चलने वाले उस आदर्श प्रेमी को तब ग़ुस्सा आ जाता है ईश्वर की बनाई इस दुनिया में अगर प्रेम की दीवानगी अनंत काल या जीवनभर तक चलती तो क्या होता? क्या इंसान कुछ और कर पाता सिवाय इश्क़ फरमाने के? राजनीति, दर्शन, धर्म, समाज, विज्ञान आदि का क्या होता. 


 

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