सूबों में जंग, जंतर-मंतर पर संग, यही है इंडी ब्लॉक का सियासी ढंग !
नई दिल्ली, 30 जुलाई (आईएएनएस)। दिल्ली, पंजाब, पश्चिम बंगाल, हरियाणा से लेकर केरल तक आपसी सियासी तकरार से दो चार हो रहे इंडी ब्लॉक के घटक दलों को आखिरकार किसी तरह एकजुटता दिखाने का एक मौका मिला और यह मौका मिला जेल में बंद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरती सेहत की वजह से।
विपक्षी इंडी गठबंधन के नेताओं ने जंतर-मंतर पर मंच साझा करते हुए केजरीवाल की सेहत और रिहाई को लेकर आवाज बुलंद की। आम आदमी पार्टी से लेकर सपा, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और वामपंथी नेताओं ने एक सुर में केजरीवाल की गिरफ्तारी का विरोध किया और केंद्र की सरकार की कथित दमनकारी नीतियों पर जमकर हमला बोला।
मंच पर मौजूद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल को माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने शेरनी बताया तो किसी ने भाभी को संघर्ष पथ पर डटे रहने की सलाह दी। लेकिन, यह भी हकीकत है कि बंगाल से लेफ्ट का सफाया करने वाली ममता को शेरनी बताने पर येचुरी समेत पूरा वामपंथी कुनबा बिदक जाता है। कुल मिलाकर कई सूबों में आपस में सियासी जंग लड़ रहे इंडी के दलों ने इस मौके का इस्तेमाल सिर्फ यह संदेश देने के लिए किया कि विपक्षी खेमे में सब कुछ सामान्य है और सूबों में तो करार के तहत ही अलग-अलग हैं। लेकिन, केंद्र स्तर पर हम सब एक हैं।
हालांकि, लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस और आप पंजाब में अलग-अलग राह पकड़े रहे। दिल्ली में दिल मिलने का दिखावा करते रहे। शायद यही वजह है कि दिल्ली की जनता को इस तरह का चुनावी मिलन रास नहीं आया। जाहिर है चंद माह में हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव होंगे और इंडी गठबंधन जनता के बीच कुछ सियासी विकल्प का संदेश नहीं दे पा रहा है। न ही ब्लॉक ने अभी तक वैकल्पिक नीतियों में एकजुटता दिखाई और न ही गवर्नेंस को लेकर अपने कोई विजन को ठीक से साझा किया है, जो जनता के जेहन में अच्छी छवि बनाए।
ऐसे में जानकारों का मानना है कि वोटरों के बीच संदेश तो यही जा रहा है कि यह विपक्षी ब्लॉक किसी ठोस आधार पर नहीं बल्कि सिर्फ भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ किसी तरह खड़े होने की कोशिश भर है। राजनीतिक जानकार इसका प्रमाण भी पेश करते हैं। पंजाब में कांग्रेस और आप नेता जिस तरह से एक-दूसरे के खिलाफ आग उगलते आ रहे हैं, वह किसी से छिपा नहीं है। दिल्ली में भी कांग्रेस और आप जुदा हो चुके हैं और एक-दूसरे के खिलाफ सियासी हमला बोलने का कोई मौका चूकते नहीं हैं।
इंडी ब्लॉक के दोनों घटकों के बीच इतने तीखे तेवर नजर आते हैं, जितने की भाजपा के साथ दिखाई नहीं पड़ते। वहीं, केरल में वायनाड लोकसभा सीट पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) नेता डी. राजा की पत्नी ने चुनाव लड़कर इस पर और मुहर लगा दी थी। जंतर-मंतर के मंच पर राजा विराजमान थे और कांग्रेस नेताओं से बड़े ही हल्के मूड में बात करते हुए कुछ मतभेद भुलाने का संदेश देने की कोशिश कर रहे थे। कांग्रेस और ममता बनर्जी की पार्टी के बीच बंगाल में सियासी उठापटक भी जगजाहिर है।
कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ममता और उनकी सरकार पर तीखे प्रहार करते ही रहते हैं। वामपंथी दलों और ममता बनर्जी के बीच भी कोई सहज रिश्ते नहीं हैं। हरियाणा में भी आप और कांग्रेस के बीच तकरार सार्वजनिक तौर पर नजर आती है। लोकसभा चुनाव में आप उम्मीदवार की हार के पीछे कांग्रेस का हाथ होने के आरोप लगाने से आम आदमी पार्टी के नेता चूकते नहीं हैं। अब तो हरियाणा में आप पूरे 90 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है। यानी संदेश साफ है कि इंडी ब्लॉक में घटक दलों के बीच सियासी तकरार सभी अहम सूबों में बढ़ेगी। वहीं, संसद में सरकार को घेरने में जुटे इंडी गठबंधन अपने दरार को ढकने की कोशिश में है।
भाजपा तो पहले ही ब्लॉक की हवा निकालने का कोई मौका छोड़ नहीं रही है। ऐसे में संसद सत्र के दौरान केंद्र की मोदी सरकार को घेरने की इंडी ब्लॉक की रणनीति को अंदरुनी कलह कमजोर न कर दे तो एकजुटता का संदेश देना भी जरूरी हो गया था। मौका भी केजरीवाल की सेहत की वजह से मिल गया। ऐसे में केजरीवाल की गिरफ्तारी के खिलाफ जंतर-मंतर पर जुटने की इंडी गठबंधन के दलों की विवशता समझी जा सकती है। जंतर-मंतर के जुटान से ठीक एक रोज पहले सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में अरविंद केजरीवाल को कथित शराब घोटाले का किंगपिन बता दिया। जाहिर है इससे इंडी ब्लॉक की मुहिम को झटका तो लगा ही।
माकपा नेता सीताराम येचुरी इसकी चर्चा किए बगैर नहीं रह सके। उन्होंने कहा कि केजरीवाल के खिलाफ सीबीआई ने आरोप लगाए हैं तो जांच करके साबित होने के बाद सजा दी जाए। उन्होंने कहा कि अभी से ही उन्हें बंद रखने का क्या औचित्य है। येचुरी के कथन में केजरीवाल पर तय किए गए आरोपों का जिक्र करने की मजबूरी साफ नजर आ रही थी।
अब जनता के बीच सवाल तो है ही कि आखिर यह कैसा गठबंधन है, जिसके दल तो हर कहीं एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं और केंद्र में एकजुटता का प्रदर्शन करते हैं। विश्लेषक मानते हैं कि अगर जनता इसे अवसरवादी सियासत का एक ठोस नमूना बताने लग जाए तो अचरज नहीं होना चाहिए।
बहरहाल, मंगलवार को जंतर-मंतर पर यह विरोध प्रदर्शन दोपहर 1 बजे से शाम 5 बजे तक किया गया। इस दौरान इस प्रदर्शन में सपा प्रमुख अखिलेश यादव, राम गोपाल यादव, एनडी गुप्ता, प्रमोद तिवारी, गौरव गोगई, संजय राउत, शरद पवार और मनोज झा और सीपीआई के डी. राजा भी शामिल हुए।
इस प्रदर्शन में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, सीपीआई, झारखंड मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, शरदचंद्र पवार (एनसीपी-एसपी), शिव सेना (यूबीटी) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन और राजद जैसे दल भी शामिल हुए। इन सभी पार्टियों का मकसद मंच पर एकजुटता दिखाना था। लेकिन, मंच के बाहर पार्टियां अपने-अपने एजेंडे पर ही काम करती दिखाई दे रही हैं।
--आईएएनएस
पीकेटी/एबीएम