विहिप की बैठक में हिंदू शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दिलाने और धार्मिक यात्राओं की पवित्रता बचाने का संकल्प
जोधपुर/नई दिल्ली, 28 जुलाई (आईएएनएस)। विश्व हिंदू परिषद की राजस्थान के जोधपुर में हुई दो दिवसीय प्रबंध समिति की बैठक का समापन सभी हिंदू शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दिलाने और धार्मिक यात्राओं की सात्विकता बनाए रखने सहित कई अन्य महत्वपूर्ण संकल्पों के साथ हुआ।
विहिप की इस दो दिवसीय महत्वपूर्ण बैठक में देश भर में विहिप के 47 प्रांतों सहित विश्व भर के लगभग 300 पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया। विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार ने राजस्थान के जोधपुर में हुई विहिप की दो दिवसीय बैठक के समापन के बाद मीडिया से बात की।
उन्होंने बताया कि बैठक में प्रत्येक विस्थापित हिंदू को नागरिकता मिले, हिंदू मान्यताओं व परंपराओं की सात्विकता एवं पवित्रता सुनिश्चित करने के साथ, मंदिरों को जागरण, धर्म प्रचार, सेवा व समरसता के केंद्र बनाने का संकल्प लिया गया।
विहिप अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष ने आगे कहा कि इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को विहिप के 60 वर्ष पूर्ण होंगे। बैठक में यह निर्णय लिया गया कि ऐसे में देशभर में हजारों स्थानों पर व्यापक जनजागरण कार्यक्रम करवाए जाएं। अगले महीने, 24 अगस्त से एक सितंबर के बीच आयोजित होने वाले इन स्थापना दिवस महोत्सव कार्यक्रमों के अंतर्गत विहिप की 60 वर्षो की उपलब्धियां, वर्तमान में राष्ट्र, धर्म व हिंदू समाज के समक्ष चुनौतियां तथा उनके निराकरण के संबंध में चर्चाएं, सम्मेलन और सार्वजनिक कार्यक्रम होंगे। इनके माध्यम से संगठन विहिप के कार्यों और हिंदू जीवन मूल्यों को जन-जन तक लेकर जाएंगे।
नागरिकता संशोधन अधिनियम का जिक्र करते हुए आलोक कुमार ने बताया कि राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश के कई राज्यों में विहिप एवं बजरंग दल कार्यकर्ता हर गांव, गली-मोहल्ले में पाकिस्तान से आए पीड़ित विस्थापित हिंदुओं को भारत की नागरिकता दिलाने में सहयोग कर रहे हैं। इन कोशिशों के कारण हजारों शरणार्थी हिंदुओं का नागरिकता हेतु पंजीयन हो चुका है और सैकड़ों को नागरिकता भी मिल चुकी है। बैठक में यह तय किया गया कि इस प्रक्रिया में और तेजी लाई जाएगी ताकि शेष बचे हुए पीड़ितों को भारत की नागरिकता जल्द से जल्द दिलाई जा सके।
कांवड़ यात्रा के दौरान उठे विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए विहिप नेता ने कहा कि मुसलमानों का यह अधिकार बताया जाता है कि वह खाने के पहले देखें कि वह खाना हलाल का है या नहीं। खाने में धार्मिक भाव को देखा जा सकता है तो बेचने वाले के बारे में क्यों नहीं? इस बारे में कानून 2006 में बना था और 2011 में नियम बने थे। इन नियमों में यह निर्देश था कि खाने का सामान बेचने वालों को अपना लाइसेंस दुकान पर लगाना पड़ेगा, जिसमें उनका नाम शामिल है। उस समय केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली मनमोहन सिंह की सरकार थी।
उन्होंने कहा कि बहुत सारे ऐसे कानून हैं, जिसमें हर दुकानदार को अपनी दुकान के सामने अपना रजिस्ट्रेशन लगाना पड़ता है। इसमें उसका नाम होता ही है एवं इसके अलावा अन्य काफी जानकारियां होती है, जैसे जीएसटी नंबर, टिन नंबर, शॉप एंड एस्टेब्लिशमेंट एक्ट आदि। फिर इस बार ही आपत्ति क्यों? यह सर्वविदित है कि हिंदू धर्म स्थलों, तीर्थों तथा धर्मिक यात्राओं के मार्ग में बहुत सारे मुसलमान दुकानदार अपने दुकान का नाम हिंदू देवी-देवताओं के नाम पर रखते हैं तथा कई जगह तो वे हिंदू देवी-देवताओं के चित्र भी लगाते हैं। यह सीधे-सीधे अपना मजहब छुपाकर धोखा देने की बात है। कोई इस प्रकार के धोखे को अपना कानूनी अधिकार कैसे बता सकता है? क्या तीर्थ यात्रियों को यात्रा में अपने धर्म के अनुसार धार्मिक सात्विक खाना खाने का अधिकार भी नहीं है?
उन्होंने नेम प्लेट लगाने के फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि उन्हें यह मालूम है कि सुप्रीम कोर्ट ने अभी इस आदेश पर रोक लगाई है। इस आदेश का सम्मान होना चाहिए। लेकिन, वे यह आशा करते हैं कि गुण-दोष के आधार पर पूरी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट अपना यह आदेश वापस लेकर नेम प्लेट लगाने के आदेश के खिलाफ दायर की गई याचिका को शीघ्र रद्द कर देगा।
--आईएएनएस
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