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लोकतंत्र हमारी संस्कृति और स्वभाव का हिस्सा है : ओम बिरला

 
लोकतंत्र हमारी संस्कृति और स्वभाव का हिस्सा है : ओम बिरला

जोधपुर/नई दिल्ली, 27 जुलाई (आईएएनएस)। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने आम जनता को सरल, सुलभ, सहज और त्वरित गति से न्याय दिलवाने के लिए सरकार द्वारा किए कई वैधानिक बदलावों का जिक्र करते हुए न्यायपालिका से भी इसमें बराबर की भूमिका निभाने का आग्रह किया है।

उन्होंने देश की पेंडिंग मुकदमों और अदालत से मिलने वाली लंबी-लंबी तारीखों का जिक्र करते हुए कहा कि न्यायालयों में लंबित मुकदमों के निस्तारण, न्याय व्यवस्था की खामियों को दूर करने और आम जनता को सुलभ, सस्ता और त्वरित न्याय देने के लिए देश की अदालतों को तकनीक का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए।

राजस्थान उच्च न्यायालय की स्थापना के 75 वर्ष पूर्ण होने पर जोधपुर में आयोजित राजस्थान उच्च न्यायालय के प्लेटिनम जुबली समारोह को संबोधित करते हुए बिरला ने राज्य के तीनों अंगों के कार्यक्षेत्र की बात कहते हुए कहा कि संविधान निर्माताओं ने राज्य के तीनों अंगों, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका, के बीच कार्यों का बंटवारा किया है और तीनों अंगों को साथ-साथ चलते हुए स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से काम करना चाहिए।

भारत को 'मदर ऑफ डेमोक्रेसी' बताते हुए बिरला ने हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में 65 करोड़ लोगों ने भागीदारी कर अपनी सरकार को चुना है। दुनिया के देश भारत के चुनाव को देखकर अचंभित हैं। लोकतंत्र हमारी संस्कृति और स्वभाव का हिस्सा है। भारत का लोकतंत्र शासन के सभी अंगों के सामूहिक प्रयासों से 75 वर्षों की यात्रा में सशक्त हुआ है। निष्पक्ष चुनाव आयोग पर जनता का भरोसा और चुनाव में लोगों की इतनी बड़ी भागीदारी, भारतीय लोकतंत्र की बड़ी ताकत है।

उन्होंने पीएम मोदी के 2047 तक देश को विकसित भारत बनाने के लक्ष्य का जिक्र करते हुए कहा कि देश के प्रत्येक नागरिक और प्रत्येक संस्थाओं को इसमें अपना योगदान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि आम लोगों के जीवन को आसान, सरल और सुगम बनाने के लिए हर स्तर पर प्रयास हुए हैं। सरकार ने पिछले एक दशक में 'इज ऑफ लिविंग' के लिए अनगिनत कार्य किए हैं। 'इज ऑफ जस्टिस' इसी दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास है, जिसमें न्यायपालिका की बड़ी भूमिका है।

प्रभावी न्याय प्रणाली को विकसित भारत के संकल्प का एक महत्वपूर्ण अंग बताते हुए बिरला ने कहा कि सरल, सुलभ और त्वरित न्याय इसके तीन प्रमुख स्तंभ हैं। उन्होंने संसद द्वारा पुराने कानूनों के स्थान पर पारित भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, न्याय संहिता और साक्ष्य अधिनियम को देश की न्याय व्यवस्था का नया युग बताते हुए कहा कि इन नए कानूनों के निर्माण ने देश में लीगल सिस्टम का एक नया युग आरंभ किया है। न्यायालयों और अधिवक्ताओं को इन तीनों नए कानूनों के बारे में अध्ययन कर, इनका अधिकतम लाभ जनता तक पहुंचाने के लिए प्रयास करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि भारत की न्यायपालिका ने इन मूल सिद्धांतों के संरक्षण के लिए निरंतर कार्य किया है। न्यायपालिका ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मूल अधिकारों के संरक्षण को लेकर कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं। केंद्र की मोदी सरकार द्वारा हाल ही में संसद में पेश किए गए बजट का जिक्र करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि 1947 में देश का पहला बजट 175 करोड़ रुपए का था,1952 में देश का बजट 400 करोड़ रुपए का था और इस बार सदन में 48 लाख करोड़ रुपये का बजट पेश किया गया है।

--आईएएनएस

एसटीपी/एबीएम

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